अक्सर आपने अखबार या न्यूज़ चैनल के माध्यम से सुना होगा कि आरबीआई ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर दिया. जिसके कारण अब आपकी जेब पर अधिक भार पड़ेगा और अगर आपने कोई लोन लिया है तो उसके बदले आपको अधिक ईएमआई चुकानी पड़ेगी.
तो आज इस पोस्ट के माध्यम से हम समझने की कोशिश करेंगे कि आखिर आरबीआई इंटरेस्ट रेट क्यों बढ़ाता है? और इसका देश की अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ता है?

चलिए सबसे पहले बात करते हैं महंगाई की, क्योंकि महंगाई ही इन सब की जड़ है आसान भाषा में कहे तो महंगाई दर जितनी होगी, ब्याज दरें भी उसी के आसपास होनी चाहिए. ऐसा ना होने पर असंतुलन पैदा होता है और इस असंतुलन को आरबीआई ब्याज दरें बढ़ाकर या फिर घटाकर संतुलित करता है.

महंगाई दर (Inflation)

महंगाई दर – एक निश्चित अवधि में देश में किसी भी वस्तुओं या सेवाओं की कीमत में जो बढ़त यह गिरावट देखने को मिलती है उसे मुद्रास्फीति कहा जाता है. और इसे प्रतिशत में महंगाई दर कहा जाता है. मुद्रास्फीति एक निश्चित अवधि में कीमतों में वृद्धि की दर है.

महंगाई बढ़ने के कारण

  1. डिमांड और सप्लाई – अर्थव्यवस्था में डिमांड और सप्लाई दोनों के बीच संतुलन रहना बहुत जरूरी है. लेकिन जब वस्तुओं की डिमांड बढ़ने लगती है और उसकी सप्लाई कम पड़ जाती है. तो उन वस्तुओं के दाम बढ़ने लगते हैं जिस कारण से महंगाई बढ़ने लगती है. किसी भी वस्तु की डिमांड बढ़ने का सबसे बड़ा कारण है कि लोगों के पास पर्याप्त मात्रा में लिक्विडिटी या पैसे है, जिस कारण से वे उस चीज को खरीदने में सक्षम है. ऐसे में महंगाई बढ़ने लगती है.
  2. जिओपॉलिटिकल टेंशन – जब कभी भी दुनिया में युद्ध जैसे आसार बन जाते हैं. तब उसका असर किसी एक देश पर नहीं बल्कि पूरी दुनिया पर और उनकी अर्थव्यवस्थाओं पर भी पड़ता है. क्योंकि उस युद्ध से पूरी दुनिया भर में भी असंतुलन फैल जाता है. ऐसे तनाव से ग्लोबल सप्लाई चेन पर भी बुरा असर पड़ता है जिससे दैनिक जरूरत की चीजें महंगी होने लगती है और महंगाई दर बढ़ने लगती है.
  3. कच्चा तेल – दुनिया भर में बहुत से देश कच्चे तेल का आयात करते हैं. लेकिन जब कच्चे तेल के दाम में वृद्धि होने लगती है तो ऐसे में उन देशों के लिए कच्चे तेल का आयात बहुत महंगा हो जाता है. जिससे पेट्रोल डीजल की कीमतों में वृद्धि होती है. उसका सीधा असर खाने-पीने और यातायात जैसी चीजों पर पड़ता है और महंगाई दर में वृद्धि होने लगती है.

कैसे रुकती है महंगाई, ब्याज दरें बढ़ने से

जब महंगाई काफी अधिक हो जाती है, तो केंद्रीय बैंक (RBI) बाजार से लिक्विडिटी को कम करने की कोशिश करते हैं. केंद्रीय बैंक (RBI) प्रमुख ब्याज दरों में इजाफा कर देते हैं. इसके बाद बैंकों को भी लोन पर दरें बढ़ानी होती हैं. बढ़ी हुई ब्याज दरों के चलते ग्राहक लोन लेना कम कर देते हैं. इससे बाजार में लिक्विडिटी (पैसों की आवक) कम हो जाती है और महंगाई पर काबू पाया जाता है.

आरबीआई का मुख्य काम महंगाई को नियंत्रण में रखना होता है. आरबीआई हमेशा देश की महंगाई दर का अनुमान तय करता है. लेकिन जब महंगाई दर आरबीआई के अनुमान से अधिक होने लगती है, तब आरबीआई दरों में वृद्धि करता है और महंगाई को काबू में करने की कोशिश करता है.

ब्याज दरें बढ़ने का Growth पर असर

ब्याज दरें बढ़ने से देश की जीडीपी दर (Growth) में गिरावट देखने को मिलती है. एक अच्छी डिमांड GDP Growth के लिए बढ़िया होती है। लेकिन जब महंगाई काफी अधिक हो जाती है, तो केंद्रीय बैंक बाजार से लिक्विडिटी को कम करने की कोशिश करते हैं जिससे इकोनामिक स्लोडाउन की आशंका बढ़ जाती है.

भारत में महंगाई का कारण

भारत में महंगाई पर सबसे ज्यादा असर तेल और गैस की कीमतों का पड़ता है क्योंकि भारत एक आयातक देश है जो विदेशों से कच्चा तेल आयात करता है. तेल की बढ़ी कीमतों का असर माल ढुलाई के साथ-साथ अन्य सभी वस्तुओं पर भी पड़ता है. जिसके कारण महंगाई में वृद्धि होने लगती है. साथ ही साथ जब रुपए में कमजोरी होती है तो आयात और महंगा हो जाता है. जिसके कारण भारत को तेल की कीमतों का अधिक मूल्य चुकाना पड़ता है. और महंगाई बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है.

आज के समय में पूरी दुनिया आपस में जुड़ी हुई है और वैश्विक दृष्टि से भारत भी पूरी दुनिया से जुड़ा हुआ है. जिस कारण से अगर दुनिया में कुछ भी होता है तो उसका सीधा असर भारत पर भी पड़ता है. वर्तमान में बात करें तो दुनिया भर के सभी बड़े देश अमेरिका, यूरोप या फिर एशिया के अन्य देश. पूरी दुनिया भर में महंगाई चरम पर पहुंचती हुई दिखाई दे रही है. उसके पीछे कोरोनावायरस एक बहुत बड़ा कारण है जिस कारण से पूरी दुनिया में स्लोडाउन आया था. दुनिया के बड़े-बड़े देशों के सेंट्रल बैंक ब्याज दरों में तेज वृद्धि कर रहे हैं. जिस कारण से भारत में भी ब्याज दरें बढ़ाना आरबीआई की जरूरत बन गया है.

आरबीआई रेपो रेट क्यों बढ़ा रहे हैं

रेपो रेट और बांड – भारत भी अन्य देशों की तरह बांड जारी करता है. यह बॉन्ड कई लाख करोड़ रुपए के होते हैं. जिन बॉन्ड्स में विदेशी निवेशक बड़ा पैसा निवेश करते हैं. निवेशकों को इस बांड पर अच्छा ब्याज मिलता है. सरकार इन बॉन्ड्स के द्वारा जुटाए गए पैसों को विकास कार्यों में खर्च करती है. लेकिन जब सेंट्रल बैंक ब्याज दरों में वृद्धि करते हैं तो बॉन्ड्स की भी ब्याज दर बढ़ती है.

उदाहरण के लिए अगर अमेरिका के फेडरल रिजर्व ने ब्याज दर बढ़ाई तो अमेरिका के बॉन्ड पर भी ब्याज दर बढ़ने लगेगी. अब ऐसे में अगर भारत अपने यहां ब्याज दरों को नहीं बढ़ाता है. तो फिर अमेरिका और भारत में मिलने वाले ब्याज दरों के बीच का अंतर कम होने लगेगा. ऐसे में विदेशी निवेशक भारतीय बाजारों से पैसे निकालने लगेंगे और अमेरिकी बाजारों में निवेश करेंगे. ऐसा करने से विदेशी निवेश घटने लगेगा और रुपए में भी कमजोरी आने लगेगी. इस कारण आरबीआई को भी ब्याज दरें बढ़ाने पड़ती है.

रुपये पर पड़ेगा असर – आरबीआई द्वारा रेपो रेट नहीं बढ़ाने से विदेशी निवेशक भारत में बांड से निकासी करने लगेंगे. इससे आरबीआई को बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा इन निवेशकों को देनी पडे़गी. देश में विदेशी मुद्रा में कमी आएगी और परिणामस्वरूप रुपये की कीमत गिरने लगेगी.

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